Sunday 17 October 2010

मैं और बचपन का वो इन्द्रधनुष

Indradhanushबारिश बीतती तो आसमान उजला-उजला निखर आता । और तब, जब भी आसमान में इन्द्रधनुष को देखता तो जी करता कि इन साहब के कुछ रंग चुराकर पेंटिंग बनाऊँ । तमाम कोशिशों के बावजूद में असफल होता और इन्द्रधनुष मुँह चिढ़ाता सा प्रतीत होता । नानी कहती "अरे बुद्धू, उससे भी कोई रंग चुरा सकता है भला" । मैं नाहक ही पेंटिंग करने का प्रयत्न करता । मैं मासूम उड़ती चिड़िया को देखता, तो मन करता कि इसको पेंटिंग में उतार लूँ । कई बार प्रयत्न करता और हर दफा ही, कभी एक टाँग छोटी हो जाती तो कभी दूसरी लम्बी ।

बचपन में अच्छी पेंटिंग ना कर पाने का दुःख मुझे हमेशा रहता । मेरा पसंदीदा विषय होते हुए भी, मैं उसे कभी अपने हाथों में नहीं उतार सका । और जब तब रूआसा हो जाता । तब नानी मुझे गोद में बिठाकर कहती "ईश्वर हर किसी को कुछ न कुछ हुनर अवश्य देता है । सबसे ज्यादा जरुरी है, उसकी बनायीं हुई सृष्टि को समझाना, उसे महसूस करना ।"

बचपन बीता और साथ ही पेंटिंग का हुनर सीखने की मेरी ख़्वाहिश भी उसके साथ जाती रही । धीमे-धीमे बड़ा हुआ तो कुछ नयी ख्वाहिशों ने जन्म लिया । कुछ साथ रहीं, तो कुछ ने बीच रास्ते ही दम तोड़ दिया ।

अपने बी.एस.सी. के अध्ययन के दिनों में, मैं घर पर ही गणित की ट्यूशन पढाया करता था । तमाम बच्चे सुबह-शाम ग्रुप में मुझसे पढने आया करते । अधिकतर दसवीं और बारहवीं के बच्चे हुआ करते । और सुबह-सुबह ही गली के मोड़ से चहल-पहल प्रारंभ हो जाती । सर जी नमस्ते, सर जी गुड मोर्निंग जैसे लफ्ज़ गली में सुनाई देते । बच्चे तो बच्चे, उनके माता-पिता भी सम्मान की दृष्टि से देखते ।

उन्हीं सर्दियों के दिनों में, नानी का हमारे घर आना हुआ । जब सुबह-सुबह उठीं तो उन्हें वही आवाजें सुनाई दीं । तमाम बच्चों से उनकी बातें हुईं । और जब शाम को मैं बाज़ार गया तो वहाँ से नानी के लिए शौल लेकर आया । रात के वक़्त मैंने उन्हें वो शौल उढाई । कहने लगीं "बड़ा हो गया है, मेरा नन्हाँ सा पेंटर । तुझे याद है, तू बचपन में अच्छी पेंटिंग ना कर पाने पर दुखी होता था ।" उनकी बात पर मैं मुस्कुरा दिया ।

कहती थी ना मैं "ईश्वर सबको कोई न कोई हुनर देता है । तुझे गणित जैसे विषय में उन्होंने अच्छा बनाया और अब देख कितने बच्चे तुझसे पढने आते हैं । तुझे आदर मिलता है, उनका प्यार मिलता है । दुनिया में जो सबसे अधिक कीमती है, वो तुझे बिन माँगे मिल रहा है ।"

नानी की बातें एक बार फिर मुझे बचपन के दिनों में खींच ले गयीं । जहाँ खुले आसमान के नीचे लेटा मैं, इन्द्रधनुष को देख, उसके रंगों से रश्क कर रहा हूँ । और वो अपनी जबान बाहर कर, अपने कानों पर हाथों को हिलाते हुए मुझे चिढ़ा रहा है....

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* चित्र गूगल से
 

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